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भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव मनाया

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भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव मनाया

–  आज है परशुराम जी का एक अरब 97 करोड़ 12 लाख 21 हजार 119वां जन्मदिन।
– हरियाणा ब्राह्मण परिसंघ ने मनाया 38वां भगवान परशुराम जन्मोत्सव।
– परशुराम जी की पूजा करने से बच्चों में चरित्र एवं वीर रस के संस्कार पैदा होते हैं।
– परशुराम जयंति को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग।
 संस्थापक द्वारा लिखित परशुराम जी की आरती का ऑडियो किया रिलीज।

यमुनानगर। हरियाणा ब्राह्मण परिसंघ द्वारा 38वां भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया गया। शास्त्री पार्क स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर, मॉडल टाऊन में हुए कार्यक्रम में अक्षय परशुराम तृतीया का शुभारंभ परिसंघ के संस्थापक पुरुषोत्तम दास शर्मा ने भगवान परशुराम की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित एवं दीप प्रज्ज्वलित कर किया। कार्यक्रम में परशुराम परिवार द्वारा भजन कीर्तन और पूजा-अर्चना की गई।

पं पुरुषोत्तम दास शर्मा ने कहा कि अक्षय तृतीय त्रेता युग की प्रथम पुण्य तिथि है, जो सब फलों को देने वाली है। भगवान परशुराम जी का जन्म सतयुग तथा त्रेता के संधिकाल में शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया, पुनर्वसु नक्षत्र में रात्री के प्रथम प्रहर में जमदग्नि रेणुका की कुक्षि से हुआ। श्री परशुराम जी ब्रह्मा जी के पुत्र भृगु के प्रपोत्र, मर्यादा धाम और चिरंजीवी हैं। जन्म से ही इनमें ब्राह्मी धर्म व क्षात्र धर्म पूर्ण रूप में रहा। श्री शर्मा ने कहा कि भगवान परशुराम के सिमरण मात्र से ही सभी विपदाओं का नाश हो जाता है। परशुराम जी की महिमा का वर्णन करते हुए श्री शर्मा ने आगे कहा वे कष्ट हरने वाले और सुखों के दाता हैं और उन्होंने केवल अपने पितृहंताई नरेश के साथ युद्ध किया था। क्योंकि उस नरेश ने कामधेनु गाय प्राप्त करने के लिए उनके पिता जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी थी और उनका आश्रम नष्ट कर दिया था। यह व्यक्तिगत प्रतिशोध की घटना है, इसके अतिरिक्त उनका किसी भी राजवंश से युद्ध नहीं हुआ और उनके इक्कीस बार अधर्मी राजाओं के साथ युद्ध का वर्णन कहीं नहीं मिलता, इसलिए यह मिथ्या प्रचार है। जबकि इक्कीस का अर्थ पूर्ण होना है। इस युद्ध के बाद भगवान परशुराम जी ने युद्ध का भाव छोड़ दिया और समन्तक यज्ञ में समस्त भूमि व धन को कश्यप मुनि को दान में देकर महिन्द्र पर्वत पर तपस्या के लिये चले गये।

आज हम परशुराम जी का एक अरब 97 करोड़ 12 लाख 21 हजार 119वां जन्मदिन मना रहे हैं। भगवान परशुराम शिव के शिष्य हैं अत: रूद्र रूप हैं। विष्णु अंशी के कारण हरि स्वरूप हैं। इसलिए भगवान परशुराम जी ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश रूपायक हैं। भगवान परशुराम जी से प्रेरणा लेने की बात कहते हुए श्री शर्मा ने कहा कि विशेषकर ब्राह्मणों को शिक्षा लेनी चाहिए क्योंकि ब्राह्मण राजगद्दी का नहीं परंतु गुरू गद्दी का दीप्यमान रत्न है। ब्राह्मण बैरागी व त्यागी होता है। तपोनिष्ठ व धर्म निष्ठ होता है और धन का लोभी नहीं होता। अत: हम संकल्प लें कि हम संतुष्ट रहें, समाज के सुख व समन्वय का प्रयास करें। श्री शर्मा ने बताया कि इस दिन गौधुली के समय भगवान परशुराम का जन्म हुआ था और इस दिन घर-परिवार में सुख-समृद्धि हेतु अपने घर के मुख्यद्वार पर तेल के दो दीपक अवश्य जलायें। श्री शर्मा ने आगे बताया कि इसी माह की 29 अप्रैल को परशुराम द्वादशी और रुकमणि द्वादशी का पवित्र योग है। इस दिन घर में पूजा पाठ करने से पवित्रता और भंडारा करने से घर में अन्न की बरकत आती है। परिसंघ के वरिष्ठ सदस्य आरडी शर्मा ने कहा कि परशुराम जी ब्राह्म-विष्णु-महेश के प्रतीक हैं एवं उनकी पूजा करने से बच्चों में वीर रस के संस्कार पैदा होते हैं, जो देश के अच्छे नागरिक व चरित्रवान बनकर समाज की सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा करेंगे।

कार्यक्रम में संस्थापक श्री शर्मा द्वारा लिखित परशुराम जी की आरती का ऑडियो रिलीज किया गया। कार्यक्रम में सदस्यों ने एकमत से भगवान परशुराम जयंति को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की। कार्यक्रम में भजन कीर्तन का भी आयोजन किया गया था, जिसमें परशुराम परिवार के सदस्यों ने नाच-गाकर अपनी खुशी का इजहार किया। सुबह हुए कार्यक्रम के बाद इसी दिन सायं भगवान परशुराम जी की आरती का भी आयोजन किया गया।

 

Haryana Brahmin Parisangh (Bhagwan Parshuram Parivar) organised Bhagwan Parshuram Ji's Birthday in Yamunanagar Distt.