Jagadhri Hulchul. श्री गौरीशंकर मंदिर में श्री राधा कृष्ण सेवा समिति जगाधरी के तत्वावधान में श्रीमद्भगवत कथामृत का आयोजन किया गया है । वृंदावन से पधारे श्रीजीवानुग कृष्णतत्ववेत्ता श्रीतेजस्वी दास जी ने कथा में भागवत का महिमामंडन करते हुए बताया कि भागवत सभी वेद शास्त्रों का सार है ।
जिस प्रकार वृक्ष के सभी भागों में टहनियों, पत्तो एवं फलो में रस होता है, लेकिन फल पूरे वृक्ष का सार होता है। उसी प्रकार यह श्रीमद्भागवत सभी वेद शास्त्रो का सार है। यह भागवत कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है, अन्य फलों की अपेक्षा इसमे छिलका, गुठली इत्यादि त्याज्य पदार्थ नही है चारो ओर रस ही रस है । यह भक्ति रूपी रस से परिपूर्ण है। जिन स्थानों पर श्रीमद्भागवत कथा होती है वहाँ पर श्री हरि सभी देवी देवताओं, एवं पार्षदों सहित उपस्थित होते है ।
शुकदेव जी की महिमा सुनाते हुये बताया कि शुकदेव जी गोलोक धाम में राधा रानी के प्रिय तोते के रूप में रहते है । और राधा रानी को श्रीकृष्ण के गुणों को सुनाते रहते है । राधा रानी की इच्छा से ही इस धरती पर भागवत का प्रचार प्रसार करने के लिये आये । इस धरती पर अमरनाथ की गुफा में आये। वहाँ पर श्री शिव जी माता पार्वती को भागवत कथा सुना रहे थे ।
दसवें स्कन्ध में जाकर माता पार्वती को नींद आ गयी । उसके बाद शुकदेव जी ने हुंकारिया भरनी शुरू कर दी । बाद में जब शिव जी को पता चला तो उन्होंने शुकदेव को दण्डित करने के लिए त्रिशूल उठाया । तोता वहाँ से भाग खड़ा हुआ और व्यास जी की पत्नी विटिका जम्भाई ले रही थी , उनके मुख में प्रवेश करके गर्भ में चले गये।जन्म होते ही तुरंत नवयुवक होकर जंगलो की ओर चले गये । व्यास जी ने उनका पीछा किया, लेकिन निराश होकर वापस लौट आये ।
शुकदेव जी ने सबसे बड़े वैष्णव के चरणों मे अपराध किया था। इसलिए गुफाओं में जाकर निराकार रूप का ध्यान करने लगे । अब व्यास जी ने अपने कुछ शिष्यों को लक्कड़हारो के रूप में भेजा जो शुकदेव जी के पास जाकर भागवत के श्लोको को सुनाने लगे । जैसे ही शुकदेव जी ने भागवत के श्लोको को सुना तो वे आनंदित हो उठे । और वापस व्यास जी के पास आकर भागवत के रसिक बन गये । यह कथा 31 जनवरी तक चलेगी 1 फरवरी को रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाएगा । इस अवसर पर राजदुलारी जी, संदीप, रमेश वशिष्ठ, विष्णु गोयल, महेश शर्मा, देवीदयाल शर्मा, आदित्य शर्मा आदि मौजूद रहे ।