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Sadhaura : यहां पांडवों ने पाई थी आत्‍मग्‍लानी से मुक्ति

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Sadhaura : यहां पांडवों ने पाई थी आत्‍मग्‍लानी से मुक्ति
Yamunanagar : Satkumbha Bawdi Temple in Sadhaura.

Satkumbha Bawdi Temple Sadhaura, District  Yamunanagar

  • महर्षि वेद व्‍यास के अलावा महाभारत से भी बताया जाता है संबंध

  • पुराणों में वर्णित बावड़ी में आज भी मौजूद हैं सप्त धाराएं

Sadhaura (Yamunanagar) : शिवालिक की मनोरम पहाडिय़ों में स्थित सतकुंभा नामक धार्मिक स्थल की बावड़ी की गौमुख आकृति की तली में सप्त धाराओं का स्पष्ट नजारा देखा जा सकता है। इस स्थल का संबंध भगवान शिव, महर्षि वेद व्यास के अलावा महाभारत से भी बताया जाता है।

कालाअंब मार्ग पर गांव झंडा व सालेहपुर के मध्य शिवालिक की पहाडिय़ों में स्थित सतकुंभा तक पहुंचने का मार्ग बहुत कठिन है। 2014 तक तो यहां तक पहुंचने के लिए झंडा या सालेहपुर से पैदल चलकर इस दुर्गम जगह के लिए जाना पड़ता था। लेकिन 2014 में सतकुंभा के महंत अन्नपूर्णा नाथ ने ग्रामीणों के सहयोग से गांव झंडा के शिव मंदिर से लेकर सतकुंभा तक की पगडंडी को चौड़ा करके यहां बाइक या जीप से पहुंचने का रास्ता तैयार करवा दिया है

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सतकुंभा की बावड़ी की गौमुख आकार की तली में स्पष्ट नजर आती सप्त धाराएं, Satkumbha Bawdi Temple in Sadhaura.

लगभग 4 किलोमीटर के थकान भरे सफर के बाद श्रद्घालु जब मारकंडा नदी के किनारे स्थित सतकुम्भा पहुंचते हैं तो वहां की प्राकृतिक सुंदरता को देखते ही उनकी थकान दूर हो जाती है। बाकि रही-सही थकान यहां मौजूद एक बावड़ी में स्नान करने से दूर हो जाती है। इस बावड़ी की गौमुख आकार की तली में पानी की सात धाराएं निकलती हुई स्पष्ट नजर आती है। इन सप्त धाराओं के यहां पौराणीक काल से ही निरंतर बहते आने के कारण भी इस स्थान को सतकुंभा के नाम से जाना जाता है

सतकुंभा मंदिर परिसर में विलक्षण पंचमुखी शिवलिंग के अलावा माता सरस्वती की प्राचीन मूर्ति भी स्थापित है। सतकुंभा के महंत अन्नपूर्णा नाथ ने बताया कि यहां पहुंंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम होने के कारण बहुत ही कम श्रद्घालु यहां पहुंचते हैं। आमतौर पर अमावस के दिन यहां काफी संख्या में श्रद्घालु पहुंचते है और शिवरात्री के अवसर पर तो यहां मेले का माहौल हो जाता है

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Yamunanagar : विलक्षण पंचमुखी शिवलिंग, Satkumbha Bawdi Temple in Sadhaura.

बाबा अन्नपूर्णा नाथ ने बताया कि स्कन्द पुराण के हिमाद्रि खंड के श्री आदिबद्री क्षेत्र महात्मय के द्वितीय अध्याय के श्लोक नं. 24 तथा 25 में सतकुंभा के महत्व के बारे में स्पष्ट किया गया है। इसके अनुसार माराकण्डा नदी के पूर्व में एक कोस की दूरी पर सह्यद्रिपर्वत की कंदरा में स्थित सतकुंभा में मुनिश्रेष्ठ वेद व्यास ने आयुवृद्घि के लिए कुंभेश्वर की तपस्या की थी

सतकुम्भा का संबंध महाभारत काल के दौरान पांडवों से भी रहने के संबंध मे किवदंती है कि महाभारत युद्घ में विजय प्राप्त करने के बावजूद युद्घ के दौरान निर्दोष लोगों का रक्त बहने से पांडवों का मन आत्मग्लानि से भर गया था। इस आत्मग्लानि को दूर करने के लिए पांडवों को एक ऋषि ने फाल्गुनी अमावस्या को एक ही दिन में 7 पवित्र नदियों के जल में स्नान करने का उपाया बताया था

तब युधिष्ठिर को स्वपन में भगवान शंकर ने दर्शन देकर सतकुम्भा में एक ही स्थान पर 7 नदियों की धाराएं मौजूद होने की बात बताई गई। जिसके बाद फाल्गुनी अमावस्या को पांचों पांडव सतकुम्भा पहुंचे और यहां स्थित पांच धाराओं में स्नान करके युद्घ की आत्मग्लानि से मुक्त हुए। यही 7 धाराएं सतकुम्भा मे आज भी मौजूद है, जहां दूरदराज से आए लोग स्नान करके पुण्य कर्म कमाने का सौभाग्य समझते हैं

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महंत अन्नपूर्णा दास

महंत अन्नपूर्णा नाथ ने बताया कि सतकुंभा पौराणिक तीर्थ है। उनका मानना है कि नैसर्गीक सौंदर्य से भरपूर सतकुम्भा को धार्मिक के अलावा पर्यटक स्थल के रुप में विकसित किया जा सकता है। इसके अलावा ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए भी यह जगह बहुत अधिक रुचिकर हो सकती है

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